Sunday, January 24, 2016

सुविचार

त्वमादि देवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्व मनन्तरूप॥


Monday, July 06, 2015

बचपन की पुस्तकें

क्या आपको अपने बाल्यकाल की कुछ पुस्तकें याद हैं? मुझे कुछ पुस्तकें याद आती हैं जो की अब कहीं भी मिलनी मुश्किल हैं| ये पुस्तकें मेरे ताऊजी, पिताजी या मेरे बड़े भाई की थीं|
ये पुस्तकें हैं:
१. सुमन-संचय : हिंदी काव्य
२. सामान्य ज्ञान कोष
३. भाषा भाष्कर
४. जयद्रथ वध
...इत्यादि

यदि आपको भी बचपन की कुछ पुस्तकें याद आ रही हों, तो ज़रूर लिखें!


क्या लिखूं?

यह वही प्रश्न है जो कि मैंने अपनी पहली पोस्ट में पूछा था! समझ में नहीं आता था की लोग आखिर ब्लॉग में क्या/क्यूं लिखते है?
अपने विचार बताइए - आखिर आजकल आप लोग क्या लिख रहे हैं?
पिछले ४ वर्षों से तो मैं अपना अधिकतर ऑनलाइन समय फेसबुक पर व्यतीत कर रहा था| इस पब्लिक फोरम पर वापस आने का फिर से मन हुआ है| कुछ विचार आ रहे हैं आप लोगों से शेयर करने के लिए जो की अगले कुछ दिनों में साझा करेंगे...

Sunday, July 05, 2015

नमस्कार!

अंतर्मन में पुनः आपका स्वागत है! आशा है कुछ नए नवेले रोचक संस्मरण एवं विषार आप तक पहुंचा सकूंगा| स्टे ट्यून्ड!
देश का र्रज्नीतिक परिदृश्य काफी रोचक हुआ जा रहा है| कहीं योग की धूम, डिजिटल का नाद तो कहीं घोटालों का शोर| ऐसे में अपने विचारों को संतुलित कैसे रखा जाए!

बाकी तो माया है|

अभी अभी महोबा के रोटी बैंक का नाम सुना है| आइडिया बहुत अच्छा है| आशा है बाकी शहर भी ऐसा ही कुछ करेंगे| जनता को समझना होगा की वही सरकार है, उसी को सब करना है| "चुनकर" आये लोग तो ज़्यादातर "ऐंवे ही हैं" |

शुभ रात्रि|
आशा है कल का दिन आपके लिए एक नयी नवेली खूबसूरत शुरुआत हो!

Saturday, November 22, 2014

ब्लागिंग

फ़ेसबुक पर आने के बाद कई सालों से ब्लागिंग बन्द है। आजकल यहाँ क्या  चल रहा है?

Tuesday, September 16, 2014

स्वराज -एक आवश्यकता

इस देश की व्यवस्था सुधारने के लिये स्वराज बहुत आवश्यक है। एक एक नागरिक को राजनीति में भाग लेना पड़ेगा। 
सरकारें अब ख़ुद को जनता का सेवक नहीं समझती हैं।
स्वराज लोकतंत्र को चलाने का एकमात्र तरीक़ा है।  हमें इस विचार को जन जन तक पहुँचाना होगा।

Thursday, September 11, 2014

फेसबुक से वापसी

वापस ब्लॉग पर. अब समय अब ज्यादा मिलेगा तो क्रिएटिविटी ज्यादा रहेगी. आपसे फिर मिलता हूँ यहाँ!

Saturday, June 21, 2014

विकास रेल का प्लेटफार्म चेंज्ड

(इन्टरनेट द्वारा साभार)

प्लेटफोर्म नंबर एक पर आने वाली "विकास
एक्सप्रेस ",जो काला धन, सस्ती सब्जियां,
सस्ते खाने पिने का सामान, पाकिस्तान के

सेना का शव,चाइना से जमीन , एक रूपया एक
डॉलर, भय भूख भ्रष्टाचार अपराध बलात्कार
मुक्त भारत, पानी,बिजली , मकान,रोज़गार, लेकर 100 दिनों में पहुंचने वाली थी,अब
नहीं आएगी। अब इस ट्रेन का मार्ग कडवे
फैसले स्टेशन की ओर मोड़ दिया गया है।
इस ट्रेन की खबर अब आपको 2019 में
दी जायेगी। तबतक कृपया नमो नमो जाप
जारी रखें। यात्रियों को होने वाली असुविधा के लिए हमें कोई खेद
नहीं है। जो उखाड़ना हो, उखाड़ लो" 


(उपर्युक्त मेरी रचना नहीं परन्तु इन्टरनेट से प्राप्त एक व्यंग्य है, अन्यथा न लें :-) )  

Sunday, January 05, 2014

नव वर्ष २०१४ की शुभकामनाएं!

काफी दिनों बाद यहाँ पर लिखने का मौका लगा है| आप सब कैसे हैं? आशा है नया साल मन में नयी आशा लेकर आया होगा!
पिछले कुछ वर्षों से मैं काफी distracted था| मैंने २००९ भारत में आने के बाद जो नौकरी ली थी वह छोड़ कर अपना स्वयं का सॉफ्टवेर डेवलपमेंट का एक बिजनेस चालू किया (देखें www.dneconsultants.com) , अतः काफी व्यस्त था| मेरा 'लेखन' एवं communication फेसबुक तक ही सीमित हो गया, जहां पर मैं काफी active हूँ| पिछले कुछ वर्षों में मैंने कुछ काव्य लेखन भी किया है, यह फेसबुक एवं कुछ हद तक मेरे अन्य ब्लॉग पर भी उपलब्ध है.

इस वर्ष के एक resolutions में मैंने ब्लॉग लेखन भी रखा है| आशा है आप हौसला आफजाई करेंगे|
२००५ के बाद से अमेरिका में रहकर मैंने हिंदी में ब्लॉग लेखन का जो शौक पाला था, उसकी वजह से मैं बहुत अच्छे एवं प्रतिभा के धनी लोगों के संपर्क में आया| आशा है इस ब्लॉग के द्वारा वापस उनसे संपर्क हो पायेगा!
पिछले दो सालों में भारत के राजनीति पटल पर बहुत ही सरगर्मी दिखी जिसकी एक परिणति दिल्ली के चुनावी नतीजों के रूप में भी हुई है| पिछले वर्ष की दिल्ली की हृदयविदारक घटना ने काफी दुखी किया था. भारत में समाज में मध्य और निम्न वर्ग में सामंजस्य की ज़रूरत है, और लोगों तो राजनीति में आना पड़ेगा वरना गणतंत्र को खोने का खतरा है|
 इस वर्ष भी काफी विचलित करने वाली घटनाएं भी हुई हैं, और वहीं एक आशा की किरण भी है...

शुभकामनाओं सहित.
आपका मित्र!

Wednesday, November 27, 2013

राजनीति और उससे भी गंदी मीडिया

टीवी पर राजनीतिक बहसें और मीडिया का महाझूठ देखकर मन थोडा व्यथित है. हमें अपनी मीडिया को साफ़ करना होगा. कितने बिके हुए और बचकाने न्यूज़ एंकर है. 

Tuesday, March 19, 2013

लखनऊ प्रयाग यात्रा 2013

मार्च २०१३ के प्रथम सप्ताह में लखनऊ और इलाहाबाद जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह यात्रा बहुत रोचक रही। इस बारे में विस्तार से जल्द ही चर्चा की जाएगी।
मैं अपने बड़े भाई के साथ लखनऊ के चारबाग़ स्टेशन से एक साधारण श्रेणी की ट्रेन में रवाना हुआ. बहुत ही रोचक माहौल था अन्दर...

Sunday, December 30, 2012

कुछ क्षुब्ध शेर

इस बार नया साल कुछ और ही है
ख़ूँ-ए-रग में जमाल कुछ और ही है 

टूटे पैमाने का ग़म न गिले - शिक़वे
आज साक़ी से सवाल कुछ और ही है 


(DD 30 Dec 2012)

Friday, December 21, 2012

थकी हुई पोस्ट

पिछले कई महीनों से इस ब्लॉग पर कु छ खास नहीं लिखा| थोड़ा बहुत लिखा तो अपने कविता ब्लॉग पर ही लिखा|
पिछले ३ हफ्ते से यूके प्रवास पर था| पहली बार यूके गया था...बहुत कुछ सीखने-समझने को मिला|

वहाँ रहने के दौरान एक भारतीय मूल की नर्स की 'आत्महत्या' की खबर, अमेरिका में स्कूली बच्चों पर गोलीबारी और फिर दिल्ली की घटना ने बहुत आहत किया| समझ में नहीं आता हमारी मानवता किधर जा रही है|

अपनी किस्सागोई की आदत तो रही नहीं, पर फिर भी मन कर रहा है कि कुछ 'यात्रा-वृत्तान्त' टाइप का लिखा जाए| बोलिए पढेंगे क्या? कम से कम एक आध फोटो तो शेयर कर दूं|

बहुत ही ज़्यादा थकान है अभी| इतनी ठण्ड थी कि बस पूछिए मत| ऊपर से ३ शहरों की रेल-यात्राएँ!

यह थकी हुई पोस्ट यहीं खत्म करते हैं, फिर मिलते हैं!

यहाँ बंगलोर में कहीं भुनी मूंगफली मिलती है, हरी चटनी, काले नमक के साथ?

Sunday, April 01, 2012

अशोक चक्रधर जी का ई-कविता पाठ

आज मैंने पहली बार कोई कवि सम्मेलन 'देखा'। इस कवि सम्मेलन में कई देशों के श्रोताओं ने भाग लिया, 'स्काइप' द्वारा।
इस सम्मेलन में माननीय अशोक चक्रधर जी ने कविता-पाठ किया । यह हमारे कविता ग्रुुप के लिये अत्यंत गर्व की बात थी।

Friday, February 24, 2012

अम्मा उदास हूँ मैं आज

अम्मा उदास हूँ मैं आज
न सुर है, न कोई साज़

न पूछ पाया मैं
तुझसे एक राज़ -

सूखे हलक में
दब गयी मेरी आवाज़
क्या मुझपर है
तुझको नाज़


अब मेरे पंखों से
चली गयी परवाज़

स्वर्ग सा सुख देता था
तेरे मुस्कुराने का अंदाज़

अम्मा उदास हूँ मैं आज

(http://dharnispoems.blogspot.in/)

Monday, January 23, 2012

सोचता था

सोचता था दम मिलेगा पहुँच कर दर पर तेरे
मिल गई मंज़िल है पर जाने क्यों सफ़र बाक़ी है

(DD 10 Jan 2012)

फिर मिले

तुम फिर मिले
पहली बार!

You met me again
For the First time!

(DD 22 Jan 2012)

तेरे दृग

जग,मग
करते
जगमग
तेरे दृग

(my) World, (my) Path
Your Eyes Brighten

(DD 22 Jan 2012)

Sunday, January 15, 2012

शुभकामनाएं एवं हिन्दी चिट्ठा-जगत में पुनरागमन...

आप सब को मकर संक्रांति एवं नव वर्ष २०१२ की शुभकामनाएं!
आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर लिखने का मौक़ा लगा इसकी मुझे काफी 'गिल्ट-फीलिंग' भी हो रही है| वैसे इसकी वजह कुछ हद तक शायद 'फेसबुक' भी है, जहां पर पिछले वर्ष मैंने अपना काफी कीमती समय 'इन्वेस्ट' किया|

पिछले वर्ष मैं 'फेसबुक' पर एक 'April is the Cruelest Month'(URL: https://www.facebook.com/groups/aprilis) नाम के काव्य-प्रेमियों के समूह् (group) का सदस्य बना| इस अद्भुत समूह में अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि एवं पाठक हैं, और मैं यदि पिछले कुछ दिनों में कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पाया हूँ तो ये इन मित्रों की वजह से ही है| इस समूह के कुछ सदस्यों सी हिंदी चिट्ठाकार वर्ग भली-भांति परिचित है - जैसे कवित-कोश के ललित कुमार जी, मनीषा कुलश्रेष्ठ जी, अनूप भार्गव जी, रचना बजाज जी इत्यादि|

पिछले माह (दिसंबर २०११) मुझे इस ग्रुप के कुछ सदस्यों से दिल्ली एवं लखनऊ में मुलाक़ात का मौक़ा मिला| यह पहला मौक़ा था कि मैं लेखक-वर्ग के कुछ महान सदस्यों से मिल रहा था, अतः मेरे लिए यह मुलाक़ात कुछ खास ही मायने रखती थी| आशा है मैं चिट्ठाकार-समूह के कुछ लोगों से भी मिल पाऊँ|

मन में यह कौतूहल बना हुआ है कि आजकल हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में क्या हलचल मच रही है| मैंने देखा है कि काफी लोग पिछले दो वर्ष में ब्लोगिंग के बजाय फेसबुक पर अधिक सक्रिय हैं| आजकल कितने हिन्दी चिट्ठे सक्रिय रूप से लिखे जा रहे हैं?

पिछले महीने उत्तर भारत की शीतलाता झेलने के उपरांत मैंने करीब दो हफ्ते 'बैक-टू-नार्मल' होने में लगाए| बंगलोर में तो ठंड ही नहीं पडती| कई वर्षों बाद ठण्ड में लखनऊ जाने पर कई भूली-बिसरी 'लग्ज़रीज़' जैसे 'छौंकी हुई आलू मटर, आलू प्याज इत्यादि सब्जियों की पकौडियां, भुनी मूंगफली (हरी चटनी और काले नमक के साथ), गरमागरम जलेबी और समोसे इत्यादि का सेवन करने का मौका मिला| एक और बात नोट की कि सर्दियों में लखनऊ के लोग घड़ी के साथ नहीं बल्कि सूरज निकलने के साथ काम करना शुरू करते हैं|

इसके अतिरिक्त मुझे एक मित्र से १३ वर्षों बाद मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला| वह अमेरिका से छुट्टियाँ मनाने भाररत आया हुआ था|

आजकल अन्ना जी और बाबा रामदेव का आंदोलन काफी चर्चा में है| हम सबको एकजुट होकर अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ अदना चाहिए - यह किसी एक दो नेताओं का काम नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्त्तव्य है|

मुझे यह नहीं समझ आता कि दिग्विजय सिंह जैसे सिरफिरे आदमी को 'नेता' क्यों बोला जा रहा है|

सच बोलूं तो मुझे इस देश का नेतृत्व अपने कंट्रोल में ही नहीं लग रहा है ...

लंच का समय हो गया है...फिर मिलते हैं..नमस्कार!