Tuesday, May 11, 2010

छल

बहुत दिनों तक...
बहुत छला तुमने..
बात हुई ख़त्म अब

सच बोलूँ तो
यह सब मुझे था मालूम
हमेशा से...
पर मुझे बिल्कुल नहीं
तुमसे गिले-शिकवे

शुक्रिया तुम्हारा..
था धोखा ही सही
पर तुम कुछ दिन..
मेरे तो हुए.

5 comments:

दिलीप said...

waak prem ki parakashtha dikha di aapne to

दिलीप said...
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Dharni said...

दिलीप और समीर जी, हमारे शब्द आपको पसंद आए, जानकार प्रसन्नता हुई!

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

Unknown said...

shayad yahi samarpan ki paribhasha hai................