तुमने फिर से
वही किया
फिर से वही झूठ
फिर वही वादा
फिर वही मुआफ़ी
फिर वही रंजिश
फिर वही जुनून
कितनी बार मैं
करूँगा इंतज़ार तेरा
कितनी बार होऊंगा रुसवा
कितनी बार तुम
करोगे मुझे उदास
मालूम है तुम्हें
दर्द की भी
होती है हदें
गर नहीं हैं हदें तो..
तेरी वादाखिलाफी की.
3 comments:
वाह भई बहुत सुंदर.
धन्यवाद काजल जी!
jindgi kabhi kabhi aise hi mod per lakar khada kar deti hai.......
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