फर्क क्या पड़ता है तुम आओगे के न आओगे
ये तेरा नाम फिज़ाओं में लिखा रक्खा है
है ये मुमकिन नहीं यादों को तेरी मिट जाना
तेरे उन ख़तो को किताबों में छुपा रक्खा है
है ये आसाँ नहीं इस जहाँ में तेरा गुम होना
वो तेरा नाम हवाओं को बता रक्खा है
कैसे गुस्ताख गुलों पर मैं भरोसा कर लूँ
मेरे इस चमन को कांटों ने बचा रक्खा है
7 comments:
है ये मुमकिन नहीं यादों को तेरी मिट जाना
तेरे उन ख़तो को किताबों में छुपा रक्खा है
सुंदर अभिव्यक्ति..आभार!!!
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
सुंदर भावाभिव्यक्ति.
समीर जी और काजल जी, हौसला-आफजाई के लिए शुक्रिया!
सुन्दर है।
शुक्रिया शुक्ल जी!
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