Sunday, September 23, 2007

छुट्पुट विचार / अपनी भाषा

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं तो सोचा आखिर क्या लिखा जाए। यदि बहुत दिनोँ तक ना लिखें तो अब तो इतने सारे लोग हिंदी में लिखने लगे हैं, लगता है हिन्दी ज़ल्दी ही अंतर्जाल पर अपने आप को एक महत्वपूर्ण स्थान बना लेगी। मुझे याद है आज से करीब 2.5 वर्ष पूर्व अपने देश से दूर अपनी भाषा को ढूँढ़ते हुए मैंने अंतर्जाल पर चिट्ठों को पाया। उस समय चिट्ठों की संख्या उँगलियों पर गिनने लायक ही थी, उनमें से अधिकतर ब्लॉगर आई.टी. क्षेत्र से जुड़े थे। आज कलाकार, अखबार, अदाकार से लेकर बेकार लोग तक भी हिंदी चिट्ठाजगत में सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
भाषाओं एवं लिपियों के बारे में पढ़ते हुए मैंने पाया कि इथियोपिया की एक भाषा 'अम्हारिक' की लिपि देवनागरी से कई मामलों में मिलती-जुलती है। आश्चर्य की बात यह है कि इसके आस-पास की भाषाएं अरबी से मिलती-जुलती लिपि में लिखी जाती हैं, जो कि अपनी देवनागरी से कुछ खास नहीं मिलती हैं (खासकर अक्षर एवं मात्राओं का प्रयोग ) । जार्जिया देश की भाषा -लिपि भी देवनागरी से मिलती जुलती है। यह देश अपने पड़ोसी देशों से बिलकुल अलग लिपि कैसे प्रयोग करता है, यह आश्चर्य की बात है।
हमारी भाषा 'हिंदी' एवं हम हिंदू क्यों कहलाते है? हम स्वयं को भी वही कहते हैं । हमें जो कुछ भी विदेशियों ने दे दिया, हमने अंगीकार कर लिया? क्या संस्कृत भी विदेशी भाषा थी? संस्कृत विलुप्त क्यों हो गई?

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