(शायरों के नाम नहीं मालूम)
किसी की रहमतों का तलबग़ार नहीं हूं-
बाज़ार से निकला हूँ ख़रीददार नहीं हूं
------------------------
मेरी हिम्मत को सराहो,मेरे हमराही बनो-
मैने इक शम्मा जला दी है हवाओं के ख़िलाफ
------------------------
हवा घरों में कहाँ इतनी तेज़ चला करती है-
मगर उसे तो मेरा दिया बुझाना था
-------------------------
सबके होंठों पे तबस्सुम था मेरे क़त्ल के बाद-
जाने क्यों रो रहा था क़ातिल तन्हा
-------------------------
No comments:
Post a Comment