Sunday, February 05, 2006

मेरी पसन्द के कुछ शेर

(शायरों के नाम नहीं मालूम)

किसी की रहमतों का तलबग़ार नहीं हूं-
बाज़ार से निकला हूँ ख़रीददार नहीं हूं
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मेरी हिम्मत को सराहो,मेरे हमराही बनो-
मैने इक शम्मा जला दी है हवाओं के ख़िलाफ
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हवा घरों में कहाँ इतनी तेज़ चला करती है-
मगर उसे तो मेरा दिया बुझाना था
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सबके होंठों पे तबस्सुम था मेरे क़त्ल के बाद-
जाने क्यों रो रहा था क़ातिल तन्हा
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