एक हिन्दी के याहू समूह में अभिव्यक्ति की कडी मिली। अतुल अरोरा जी का कालजयी उपन्यास सामने ही था। वहां से अन्य कडियों पर गया। उसी से प्रेरणा पाकर यह चिट्ठा शुरू किया है। हिन्दी है कि बरसों बाद ही सही, मन से फूट पडी है। चलो देर आयद दुरुस्त आयद।
१९९८ में मैं अपनी पत्नी से इंटरनेट पर मिला था रेडिफ वार्ता कक्ष में। इतनी सारी coincidences एक साथ। इसका तो एक उपन्यास बन सकता है।
खुद को मैं ३० मार खां समझता था हिंदी में। अतुल वगैरह को देखकर धरातल पर आ गया।
8 comments:
स्वागत!
-ईस्वामी
http://hindini.com/eswami
स्वागत है धरणीधर भाई !
उपन्यास का इन्तज़ार है।
माननीय द्विवेदी जी
मेरी तारीफ इतनी कर दी आपने कि फूल के कुप्पा हो जाउँगा। देर से जवाब देने के लिए क्षमा। पास ही रहते है आप, मुझे ईमेल करके नँबर दीजिए बात करते है और मिलने का प्रोग्राम बनाते हैं।
सुस्वागतम् हमारी ओर से भी।
बहुत बहुत धन्यवाद सज्जनों! आशा है आप सब इसी तरह शाब्दिक स्वतंत्रता की जंग को आगे बढ़ाएँगे! पीछे मत हटियेगा! मैने भी छोटी सी शुरुआत कर दी है...
अतुल जी...वाक़ई बहुत अच्छ काम किय है आप लोगों ने! अभी नम्बर मेल करता हूँ
स्वागत हमारी तरफ से भी।
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