Monday, July 18, 2005

आश्चर्य ..इतनी हिन्दी अन्तरजाल पर!

एक हिन्दी के याहू समूह में अभिव्यक्ति की कडी मिली। अतुल अरोरा जी का कालजयी उपन्यास सामने ही था। वहां से अन्य कडियों पर गया। उसी से प्रेरणा पाकर यह चिट्ठा शुरू किया है। हिन्दी है कि बरसों बाद ही सही, मन से फूट पडी है। चलो देर आयद दुरुस्त आयद।


१९९८ में मैं अपनी पत्नी से इंटरनेट पर मिला था रेडिफ वार्ता कक्ष में। इतनी सारी coincidences एक साथ। इसका तो एक उपन्यास बन सकता है।

खुद को मैं ३० मार खां समझता था हिंदी में। अतुल वगैरह को देखकर धरातल पर आ गया।

8 comments:

eSwami said...

स्वागत!
-ईस्वामी
http://hindini.com/eswami

अनुनाद सिंह said...

स्वागत है धरणीधर भाई !

आलोक said...

उपन्यास का इन्तज़ार है।

Atul Arora said...

माननीय द्विवेदी जी
मेरी तारीफ इतनी कर दी आपने कि फूल के कुप्पा हो जाउँगा। देर से जवाब देने के लिए क्षमा। पास ही रहते है आप, मुझे ईमेल करके नँबर दीजिए बात करते है और मिलने का प्रोग्राम बनाते हैं।

Kaul said...

सुस्वागतम् हमारी ओर से भी।

Dharni said...

बहुत बहुत धन्यवाद सज्जनों! आशा है आप सब इसी तरह शाब्दिक स्वतंत्रता की जंग को आगे बढ़ाएँगे! पीछे मत हटियेगा! मैने भी छोटी सी शुरुआत कर दी है...

Dharni said...

अतुल जी...वाक़ई बहुत अच्छ काम किय है आप लोगों ने! अभी नम्बर मेल करता हूँ

अनूप शुक्ल said...

स्वागत हमारी तरफ से भी।