Sunday, January 15, 2012

शुभकामनाएं एवं हिन्दी चिट्ठा-जगत में पुनरागमन...

आप सब को मकर संक्रांति एवं नव वर्ष २०१२ की शुभकामनाएं!
आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर लिखने का मौक़ा लगा इसकी मुझे काफी 'गिल्ट-फीलिंग' भी हो रही है| वैसे इसकी वजह कुछ हद तक शायद 'फेसबुक' भी है, जहां पर पिछले वर्ष मैंने अपना काफी कीमती समय 'इन्वेस्ट' किया|

पिछले वर्ष मैं 'फेसबुक' पर एक 'April is the Cruelest Month'(URL: https://www.facebook.com/groups/aprilis) नाम के काव्य-प्रेमियों के समूह् (group) का सदस्य बना| इस अद्भुत समूह में अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि एवं पाठक हैं, और मैं यदि पिछले कुछ दिनों में कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पाया हूँ तो ये इन मित्रों की वजह से ही है| इस समूह के कुछ सदस्यों सी हिंदी चिट्ठाकार वर्ग भली-भांति परिचित है - जैसे कवित-कोश के ललित कुमार जी, मनीषा कुलश्रेष्ठ जी, अनूप भार्गव जी, रचना बजाज जी इत्यादि|

पिछले माह (दिसंबर २०११) मुझे इस ग्रुप के कुछ सदस्यों से दिल्ली एवं लखनऊ में मुलाक़ात का मौक़ा मिला| यह पहला मौक़ा था कि मैं लेखक-वर्ग के कुछ महान सदस्यों से मिल रहा था, अतः मेरे लिए यह मुलाक़ात कुछ खास ही मायने रखती थी| आशा है मैं चिट्ठाकार-समूह के कुछ लोगों से भी मिल पाऊँ|

मन में यह कौतूहल बना हुआ है कि आजकल हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में क्या हलचल मच रही है| मैंने देखा है कि काफी लोग पिछले दो वर्ष में ब्लोगिंग के बजाय फेसबुक पर अधिक सक्रिय हैं| आजकल कितने हिन्दी चिट्ठे सक्रिय रूप से लिखे जा रहे हैं?

पिछले महीने उत्तर भारत की शीतलाता झेलने के उपरांत मैंने करीब दो हफ्ते 'बैक-टू-नार्मल' होने में लगाए| बंगलोर में तो ठंड ही नहीं पडती| कई वर्षों बाद ठण्ड में लखनऊ जाने पर कई भूली-बिसरी 'लग्ज़रीज़' जैसे 'छौंकी हुई आलू मटर, आलू प्याज इत्यादि सब्जियों की पकौडियां, भुनी मूंगफली (हरी चटनी और काले नमक के साथ), गरमागरम जलेबी और समोसे इत्यादि का सेवन करने का मौका मिला| एक और बात नोट की कि सर्दियों में लखनऊ के लोग घड़ी के साथ नहीं बल्कि सूरज निकलने के साथ काम करना शुरू करते हैं|

इसके अतिरिक्त मुझे एक मित्र से १३ वर्षों बाद मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला| वह अमेरिका से छुट्टियाँ मनाने भाररत आया हुआ था|

आजकल अन्ना जी और बाबा रामदेव का आंदोलन काफी चर्चा में है| हम सबको एकजुट होकर अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ अदना चाहिए - यह किसी एक दो नेताओं का काम नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्त्तव्य है|

मुझे यह नहीं समझ आता कि दिग्विजय सिंह जैसे सिरफिरे आदमी को 'नेता' क्यों बोला जा रहा है|

सच बोलूं तो मुझे इस देश का नेतृत्व अपने कंट्रोल में ही नहीं लग रहा है ...

लंच का समय हो गया है...फिर मिलते हैं..नमस्कार!

2 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

आओ जी.

Dharni said...

धन्यवाद काजल जी! आप लोगों से पुनः मिल कर बहुत अच्छा लगा!