Tuesday, May 04, 2010

लम्हे जाने-पहचाने

जा रहे हो दूर
कुछ याद करो
पल वो जो
बीते तेरे साथ में

तुमने कहा ना
मैंने सुन लिया
तुमने सोचा ना
मैंने समझ लिया

वक्त हिरन की तरह
कुलांचें मार चला
हर तरफ बस तेरा
चेहरा नज़र आया

हर सुबह बस
तेरा ही इंतज़ार
ये जहाँ जैसे तेरी
खुशबुओं में डूबा

रुका हुआ सा वक्त
तेरी आहटों से चलता है
सुबह की रोशनी में
तेरा अक्स दिखता है.

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

Dharni said...

समीर जी, संजय जी, बहुत-बहुत शुक्रिया हौसला-आफजाई के लिए!