Saturday, August 29, 2009

बंगलोर -5वाँ दिन

अभी कार नहीं होने की वजह से बहुत समस्या है|
कल सुबह मैं नाश्ते का सामान लेने चला तो बच्चों ने भी साथ चलने की ज़िद कर दी| 1 किलोमीटर की यात्रा में समझ नहीं आ रहा था कि आगे चलें या लौट जाएँ| रास्ते भर बच्चे 'डिज़्गस्टिंग' , 'दिस ईज़ वीर्ड' बोलते रहे| बच्चे 'डॅडी वाइ डोंट दे हैव साइड्वॉक' जैसे प्रश्न पूछते रहे जिसमें से किसी का उत्तर मेरे पास नहीं था| एक पढ़े-लिखे से दिखने वाले महानुभाव ने अपनी कार तो करीब करीब हमारे ऊपर ही रोक दी| इतना समझ में आ गया की पैदल चलने की कोशिश करना बहुत ख़तरनाक है|

दोपहर को शॉपिंग के लिए जाने का मन हुआ तो एक टैक्सी बुलाई| टैक्सी बुकिंग इतनी 'हाई टेक' है की क्या बताएँ| बुकिंग डीटेल्स और कैब डीटेल्स एस एम एस पर भेज दिए जाते हैं| वैसे यहाँ की टैक्सी भारत में सबसे महँगी सेवा है|
जेट लैग की वजह से हम लगभग हर दिन शाम को ज़ल्दी सो जाते हैं| आज शाम को बिजली भी नहीं थी तो सब ज़ल्दी ही सो गए| रात को भौंकते कुत्तों की आवाज़ों ने ज़ल्दी जगा दिया|

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

छठवें दिन का इन्तजार!