Sunday, November 30, 2008

अत्यंत क्षुब्ध

पिछले 4 दिनों से समय थम सा गया है। लगता है सारी गोलियाँ मुझे लगी थीं।  यह पहली बार है कि इतना क्षुब्ध हूँ। कहीं से नहीं लगता कि लड़ाई खत्म हो गई है। अब तो शुरुआत हुई है। न डॅर है, न दुख है। दुनिया बदल गई है...अपने नेता..जनता...मीडिया सबको बदलना होगा। एक रिवॉलयूशन की ज़रूरत है।

    उसको पता है हमारी कमियां क्या हैं। वो सफल हुआ...काफी हद तक..आगे और भी होगा अगर हम नहीं बदले। हमें हर दिन 2 क़दम आगे रहना होगा...अब पुरानी मानसिकता नहीं चलेगी। समय मत नष्ट करो। उसने देश में ज़हर फैला दिया है, और अब अपनी मर्ज़ी से कहीं भी...कभी भी..कुछ भी कर सकता है। यह पिछले 2-3 वर्षो में साबित हो गया है। राजनीति भूल जाओ। नागरिकों सचेत हो जाओ। एक-एक को खुद कुछ करना होगा। हज़ारों लोगों का बलिदान अपना समाज बदलने के लिये नहीं काफी है क्या।

एक के बाद एक कहीं भी कभी भी आतंक दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। इस बार किसी साक्ष्य, किसी डिबेट की ज़रूरत नहीं है। सब कुछ वही है जो पहले  था।

बँदरबाँट वाले भी बाहर से आ गए हैं। सबको सब पता है। तुम खुद कुछ करो। सँभल जाओ। सतर्क रहो। सचेत रहो। और बलवान बनो। मेरे देश। अब जागने का वक़्त है।

और कुछ लिखने का मन नही है...न शोक व्यक्त करना न टिप्पणी करना..पिछले 15 वर्षों से लगातार वही बातें...। कितनी बार कहें।

जय हिंद। जय मानवता।