मैंने ये शेर कुछ महीने पहले लिखे थे, पर व्यस्तता के कारण ग़ज़लें पूरी नहीं कर पाया...खैर..यह रहे कुछ शेर -
चाहे जितनी दूरियाँ कर दे ज़माना बीच में,
कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें, फासले मिट जाएँगे।
ज़िन्दगी का ये सफर कितना भी लम्बा हो मगर,
कुछ तुम कहो, कुछ हम सुनें, रास्ते कट जाएँगे।
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यूँ तो जिए ये ज़िन्दगी हम अपनी ज़ोश से,
ताउम्र मगर हम रहे ख़ानाबदोश से।
यूं दीनो-दुनिया का हमेशा हमको होश था,
पर इस जहाँ के लोग लगे- बेहोश से।
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